इनफ्लेशन क्या है? क्या आप जानते है की इनफ्लेशन क्या है? यदि नही जानते हैं तो आज आप सही जगह पर आए है। दोस्तो आरबीआई ने एक रिपोर्ट पब्लिश की थी, उनके रिपोर्ट के मुताबिक, वार्षिक रिटेला इनफ्लेशन की रेट मई में सालाना आधार पर 6.30% बढ़ी, जो अप्रैल में 4.29% थी और एनालिस्ट के 5.30% के अनुमान से बहुत अधिक थी। होलसेल प्राइस इनफ्लेशन रेट 12.94% बढ़ी, जो कम से कम दो दशकों में सबसे अधिक है।
तो आखिर ये इनफ्लेशन होता क्या है? क्यों RBI इसे है साल एक रिपोर्ट में पब्लिश करता है? तो आइए आज के इस आर्टिकल में इनफ्लेशन के बारे में जानकारी जानते है की, इनफ्लेशन क्या है?, इनफ्लेशन के अलग अलग प्रकार के बारे में, इनफ्लेशन के कारण क्या है और इनफ्लेशन से जुड़ी कई अन्य जानकारी हिंदी में
Inflation का हिंदी में अर्थ होता है मुद्रास्फीति। मुद्रास्फीति वह एक ऐसी स्थिति है ,जिसमे मुद्रा का मूल्य गिरता रहता है और दूसरी और किमते बढ़ती रहती है।
इनफ्लेशन (मुद्रास्फीति) एक आर्थिक संकेत है जो अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती कीमतों की दर को इंडिकेट करता है। अंतत: यह रुपये की buying power में कमी को दर्शाता है। इसे प्रतिशत के रूप में मापा जाता है। यह प्रतिशत पिछली अवधि की तुलना में वृद्धि या कमी को दर्शाता है। Inflation चिंता का कारण हो सकती है क्योंकि Inflation बढ़ने के साथ-साथ पैसे का मूल्य घटता रहता है।
इनफ्लेशन (मुद्रास्फीति) समय की अवधि में सिलेक्टेड वस्तुओं और सर्विसेज की कीमतों में परिवर्तन की दर का एक मात्रात्मक आर्थिक उपाय है।मुद्रास्फीति इंगित करती है कि वस्तुओं और सेवाओं की चयनित टोकरी के लिए औसत मूल्य कितना बदल गया है। इसे प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
मुद्रास्फीति में वृद्धि अर्थव्यवस्था के purchasing price में कमी का संकेत देती है। इसका एक आसन सा उदाहरण देता हु की, पहले के जमाने में यानी की करीब करीब 1980 के आसपास जब आप पेट्रोल लेने जाते थे तो आपको 20 रुपए या 30 रुपए प्रति लीटर मिल जाता था। लेकिन आज के समय 1 लीटर पेट्रोल की कीमत 90 रुपए से 100 रूपए तक पहुंच चुका है।
ऐसा क्यों?
क्या चीज की कीमत बढ़ गई? नही, बल्कि आपके पैसे की कीमत कम हो गई है। जब जब किसी चीज की डिमांड बढ़ती है और सप्लाई कम होती है तो कीमत में चेंज आता है। इसे ही इनफ्लेशन कहा जाता है।
इसके पीछे का कारण है इनफ्लेशन…
आइए अब आगे इनफ्लेशन के अलग अलग प्रकार के बारे में जानकारी जानते है…
नीचे मैने इनफ्लेशन के अलग अलग प्रकार के बारे में बताया है:
Demand Pull Inflation तब होता है जब किसी अर्थव्यवस्था में टोटल डिमांड कुल सप्लाई से अधिक हो जाती है। कुल डिमांड में यह वृद्धि मुद्रा सप्लाई या इनकम के स्तर में वृद्धि के कारण हो सकती है।
Cost-push inflation तब होता है, जब मजदूरी और कच्चे माल की कीमत में वृद्धि के कारण समग्र कीमतों में वृद्धि (मुद्रास्फीति) होती है। उत्पादन की ऊंची कीमत इकोनॉमी में सप्लाई को कम कर सकती है। लेकिन माल की मांग नहीं बदली है, उत्पादन से कीमतों में बढ़ोतरी कंज्यूमर को cost-push inflation (मुद्रास्फीति) पैदा कर रही है।
Open Inflation (मुद्रास्फीति) तब होती है जब “माल के मार्केट या प्रोडक्शन के फैक्टर को स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति दी जाती है, authorities द्वारा बिना हस्तक्षेप के बिना वस्तुओं और माल की कीमतें निर्धारित की जाती हैं।” जब अथॉरिटी के बिना कोई हस्तक्षेप के काम होता है तो open inflation इसका परिणाम स्वरूप सामने आता है।
Repressed Inflation को यदि आसान से शब्दों में समझाए तो, मान लीजिए कि एक इकोनॉमी में किसी चीज अतिरिक्त मांग है। आमतौर पर, यह कीमत में वृद्धि की ओर ले जाता है। हालांकि, कीमतों में वृद्धि से अतिरिक्त मांग को रोकने के लिए सरकार मूल्य नियंत्रण, राशनिंग आदि जैसे कुछ दमनकारी उपाय कर सकती है। ऐसी स्थिति को हम Repressed Inflation कहते है।
हाइपरइन्फ्लेशन में, प्राइस लेवल तीव्र दर से बढ़ता है। वास्तव में, आप हर घंटे कीमतों में वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं। आमतौर पर, यह एक अर्थव्यवस्था के डेमोनेटाइजेशन की ओर जाता है।
क्रिपिंग: क्रीपिंग इनफ्लेशन में प्राइस लेवल कोई लगातार टाइम पीरियड में धीरे धीरे बढ़ता है। मॉडरेट इनफ्लेशन: मॉडरेट इनफ्लेशन में प्राइस लेवल में वृद्धि न तो बहुत तेज है और न ही बहुत धीमी है – यह मध्यम है।
यह एक इकोनॉमी के सभी साधन आगतों के पूर्ण रोजगार के बाद होता है। जब फुल रोजगार होता है, तो राष्ट्रीय उत्पादन पूरी तरह से परफेक्ट हो जाता है। इसलिए, अधिक धन का तात्पर्य केवल उच्च कीमतों से है न कि अधिक उत्पादन से।
वैसे तो Inflation (मुद्रास्फीति) के कई अलग अलग कारण है, जिस वजह से Inflation (मुद्रास्फीति) होता है। नीचे कुछ कारण दिए है:
यह मार्केट में करेंसी की सप्लाई पर निर्धारित करता है। करेंसी की अधिक सप्लाई इनफ्लेशन की और ले जाता है। इसी वजह से करेंसी के मूल्य कम रखना चाहिए।
डिमांड ज्यादा होना और सप्लाई कम होना, दोनो के बिच के अंतर के कारण कीमत बढ़ती है और इसी वजह से भी डिमांड पुल इनफ्लेशन देखने को मिलता है।
उत्पादन की बढ़ी हुई कीमतों के कारण वस्तुओं और सेवाओं की ज्यादा किमतो की वजह से भी इनफ्लेशन देखने को मिलता है।
यह इकोनॉमी के उधार और खर्च पर निगरानी रखता है। ज्यादा उधार (ऋण), परिणाम टैक्स में वृद्धि और उधार चुकाने के लिए ज्यादा करेंसी की प्रिंटिंग करनी पड़ती है। इस वजह से भी इनफ्लेशन देखने को मिलता है।
विदेशी बाजारों में एक्सपोजर डॉलर के मूल्य पर आधारित होता है। एक्सचेंज रेट में उतार-चढ़ाव का इनफ्लेशन की रेट पर प्रभाव पड़ता है। यह भी इनफ्लेशन का एक कारण है।
दोस्तो उपर मैने कुछ कारण बताए है, जिस वजह से आपको इनफ्लेशन देखने को मिलता है।
इनफ्लेशन इकोनॉमी के लिए चिंता का विषय तो है, लेकिन साथ साथ यह सभी को बुरी तरह प्रभावित नहीं करता है। इसके अलावा इनफ्लेशन कुछ लोगो के लिए अच्छा भी है।
इनफ्लेशन की वजह से जहां कंज्यूमर अपनी purchasing power का एक हिस्सा इनफ्लेशन के कारण खो देते हैं, तो वहीं दूसरी ओर इन्वेस्टर को इससे लाभ होता है।
इनफ्लेशन की वजह से affected assets में यदि कोई इन्वेस्टर लंबे समय तक आई वेस्ट करता है हो उसे आनेवाले समय में अच्छा फायदा भी मिलता है। जैसे की आज के समय की बात करे तो आज घर की कीमत में हररोज बढ़ती जा रही है।
बढ़ती कीमतों के कारण हरकोई यानी की कंज्यूमर इसे खरीद नही पा रहा है। लेकिन कुछ इन्वेस्टर ऐसे भी है जो इन घरों में या इस तरह के assets में इन्वेस्ट करता है तो इस इन्वेस्टमेंट से उन्हें काफी लाभ भी प्राप्त हुआ है।
ऐसे में इनफ्लेशन देश में कुछ लोगो के लिए अच्छा भी है तो कुछ लोगो के लिए हानिकारक भी है। सिर्फ देश की प्रजा के लिए नहीं बल्कि यह सरकार के लिए भी अच्छा और बुरा दोनो परिणाम देता है।
अब आइए जानते है की कैसे हम या देश की सरकार इनफ्लेशन को रोक सकती है?
इनफ्लेशन को रोकने के लिए एक सबसे आसान स्ट्रेटजी की है की सबसे पहले मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव करके इंटरेस्ट रेट को एडजस्ट करना होगा। ज्यादा इंटरेस्ट रेट इकोनॉमी में डिमांड को कम करती है। इस वजह से कम इकोनॉमिक विकास होता है और इनफ्लेशन भी कम होता है।
इसके अलावा इनफ्लेशन रोकने के लिए कई सारे अलग अलग तरीके है, जिसके बारे में मैने नीचे बताया है:
दोस्तो जब जब इनफ्लेशन रेट में वृद्धि होती है तो इसके कई अलग अलग परिणाम हमे देखने को मिलते है। नीचे मैने कुछ परिणाम बताए है, जो इनफ्लेशन रेट बढ़ने से देखने को मिलते है तो आइए जानते है…
👉इनफ्लेशन की रेट में वृद्धि purchase पावर में गिरावट का कारण बन सकती है।
👉इनफ्लेशन से आर्थिक विकास हो सकता है क्योंकि यह बढ़ती डिमांड का संकेत हो सकता है।
👉इनफ्लेशन को पूरा करने के लिए श्रमिकों की मजदूरी बढ़ाने की मांग के कारण इनफ्लेशन लागत में और वृद्धि कर सकती है। इससे बेरोजगारी बढ़ सकती है क्योंकि कंपनियों को लागतों को पूरा करने के लिए कर्मचारियों की छंटनी करनी होगी।
👉यदि देश में इनफ्लेशन अधिक है तो घरेलू उत्पाद कम कॉम्पिटेटिव हो सकते हैं। इससे देश की करेंसी कमजोर हो सकती है।
इनफ्लेशन रेट का फॉर्मूला initial CPI और final CPI के बीच initial CPI से विभाजित अंतर है। फिर परिणाम को 100 से गुणा करने पर इनफ्लेशन की रेट प्राप्त होती है।
Rate of Inflation = (Initial CPI – Final CPI/ Initial CPI)*100
CPI= Consumer Price Index
Consumer Price Index (CPI) का उपयोग करके इनफ्लेशन को कैलकुलेट किया जाता है। नीचे बताए गए स्टेप को फॉलो करके किसी भी उत्पाद के लिए इनफ्लेशन को कैलकुलेट किया जा सकता है।
दोस्तो यहां पर इनफ्लेशन कैलकुलेट करने के लिए केवल एक प्रोडक्ट का उपयोग किया है। हालांकि, Ministry of Statistics सिलेक्टेड वस्तुओं और सेवाओं की एक टोकरी का उपयोग करके इनफ्लेशन को कैलकुलेट करता है।
दोस्तो उपर बताई गई स्टेप को फॉलो करके आप आसानी से इनफ्लेशन को क्लैकुलेट कर सकते हैं।
दोस्तो आज के इस आर्टिकल में आपने जाना की इनफ्लेशन क्या है? (What Is Inflation In Hindi), इनफ्लेशन के अलग अलग प्रकार के बारे में जानकारी जानी, इनफ्लेशन से देश में किसको फायदा होता है? कैसे हम इनफ्लेशन को रोक सकते है इत्यादि जैसे बहुत से सवाल के बारे में जाना, जो इनफ्लेशन से जुड़े थे।
इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद अब आपको इनफ्लेशन से जुड़े सभी सवालों के जवाब मिल चुके होगे। फिर भी यदि आपको इससे जुड़ा कोई सवाल है या फिर “इनफ्लेशन क्या है? इसके मुख्य कारण क्या हैं?” आर्टिकल में यदि आप और जानकारी शामिल करवाना चाहते हैं तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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